कई दुखों के सैलाब निगलते
समुंदर सा हूं मैं
किनारे की तलाश में निकली
लहर सा हूं मैं
समुंदर में भटकी हुई
नाव सा हूं मैं
डूबती नाव में सवार
नाविक सा हूं मैं
एक सुख की बूंद को तरसती
धरती सा हूं मैं
पल पल सोचता हूं
क्या इन सब सा हूं मैं??
अनगिनत तकलिफ़ों को छुपाती
मुस्कुराहट सा हूं मैं
कवी - शून्य
Thursday, June 12, 2008
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